From Vijay Arya < >
MY REAL STORY
By सूबेदार मेजर विजय आर्य
3 दिसम्बर साल 71 मन था उज्वल तन था स्वतन्त्र चहू और चमन था खिल रहा मन में लेकर आक्रोश पाकिस्तान आगे बड़ रहा …..? यह शब्द मेरे मन में उस समय आ रहे थे जब हम अकखनूर (J &K )से चलकर 3 दिसम्बर को जोड़िया में शाम को आकार रुके ही थे तभी रात के 8 .45 पर हम अपनी अपनी गाडिओं में बेठे थे और में अपने रेडियो पर न्यूज़ सुन रहा था तभी हमें पता लगा की पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया और देखते ही देखते अचानक पूरा आसमान लाल हो गया और हजारों के संख्या में लोग रोते चिल्लाते अखनूर और जम्मू की तरफ भाग रहे थे अपने गाँव के गाँव खली हो रहे थे,तभी मेरे दिमाग में उप्पर लिखी कुछ पंक्तिया आ रही थी ,तभी हमें अपने अगले हुकम मिलते रहे और दिन रात अपने कiम में लगे रहे और दोनों तरफ से लगातार फायरिंग और एयर अटैक जोरो पर थे रोजाना बहुत ही जवान शहीद हो रहे थे लड़ाई जोरो पर थी एक दिन 8 दिसम्बर को यहाँ में आपको जो बताने जा रहू हु वेह मेरे साथ आज के दिन जो हुआ वही बता रहा हु मैं उन दिनों 61 इंजिनियर रेजिमेंट मैं पोस्टेड था और हमारी कंपनी ज&क में अखनूर से आगे खौद्ड में एक दिन पहले ही आकर अपना ठिकाना एक ए डी स (मोबाइल मिलिट्री होस्पीटल ) ,में लगाया था और हमें अपने माइंस प्राइम करके रखी थी ताकि अगले दिन दुश्मन के इलाके में लगाने की लिए ,पता नहीं केसे पकिस्तान को इस बात का पता लग गया और वेह अज का ही दिन था 8 दिसम्बर 1971 हम सब अपने अपने कामो में वेअस्त थे की अचानक ठीक 10 बजे सिअरोन बजा (इस का मतलब था पाकिस्तान ने हमारे ऊपर एयर अटैक कर दिया हे ) जो जहा भी जो कम कर रहा था सब भाग कर अस पास के जो भी मोर्चा थे उस मैं जाकर पनाह ले ली कुछ ही मिनटों में पाकिस्तान के जहाज ने हमारे कैंप के ऊपर 1000 ,1000 पोंड के दो बम गिराए जो हॉस्पिटल के साथ ही गाडिओं का शेड था वेह बम उसके उप्पर जाकर गिरे तो इतना ज़बर्दस्त धमाका हुआ के आस पास के जितने भी मोर्चे थे सब क सब धमाके से पूरी अन्दर से टूट गए और दब गए / जेसे आधे घंटे के बाद क्लीयरेंस का सिइअरिन बजा तो और कंपनी के जवान जो हम से कुछ दूर थे आकार सभी मोर्चो को खोदना शुरू किया तो तक़रीबन उस एरिया का पास जितने भी मोरचे थे उन में से कोई जवान जिन्दा नहीं था सब के सब साँस बंद होने से शाहीद हो चुके थे जो 34 जवान थे ,मगर जब हमारा मोर्चा खोदना शुरू किया तो सब देख कर ढंग रह गए की मुझे और मेरे साथ एक सरदार सुरिंदर जी को साँस चल रहा था ,इस का कारन था के हम जब भागे थे तो हम वह पर क्वार्टर गार्ड थी उसके पीछे के मोर्चे में हम जाकर पनाह ली थी यह हमारी किस्मत ही थी की वेह वोर्चा उप्पर से तीन टीन की चादरों से बनाया गया था ,( मगर बाकि के सभी मोर्चे कचे मिटटी के और उप्पर से घास फूस से बने थे /), तो इस तरह हमारा मोर्चा अन्दर से तो टूट गया था मगर कुछ हवा उसमे अत्ति रही , तो इस तरह हमें बाहर निकाला गया फिर हमारे हथिआर भी निकले गए मिटटी में से /
यहाँ में आपको यह भी बताना चाहता हु की पाकिस्तान का निशानi कबी भी ठीक नहीं लगा ,अगर कही उसका निशाना ठीक हमारी माइंस के उप्पर लगता तो हमारा बहुत ही बड़ा नुकसान भी होता और जवान भी बहुत ही जयादा अपनी जान गवा बैठते .
इस के बाद तो फिर पूरी लड़ाई जो 18 दिसम्बर को समाप्त हुई तब तक ऐसा लगता था की कभी भी कुछ भी हो सकता हे लगातार सारा सारा दिन और रत दुश्मन की गोलिओं चलती रहती थी ,यह एक बहुत लम्बी दास्ताँ हे जो आज के दिनों में याद आ ही जाती हे जिसे हम भुला कर भी नहीं भुला सकते /
अज के दिन में अपने उन साथिओं को यद् करता हु और उनेसलूट करता हु और अक्सर कहता रहेता हु गालो मुस्क्रालो मेह्फ्ले सजालो कियाजाने कब कोई साथी छुट जाये ?और जिन्दिगी इक सफ़र हे सुहाना यहाँ कल किया हो किसने जाना ?
सूबेदार मेजर विजय आर्य,
#HM 42 ,फेज –2, मोहाली –160055 ,
(चंडीगढ़) म 09988505690 , घर 0172-2266710
Leave a Reply